मराठवाडा
कॉमिक्स क्लब की स्थापना 24 फरवरी
2010 को हुई। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर
मराठवाडा विश्वविद्यालय के सामाजिक कार्य महाविद्यालय मे इसी तारीख को अपनी पहिली
कार्यशाला के साथ मराठवाडा कॉमिक्स क्लब अपने कॉमिक्स कार्य की नीव रची और वहॉं से
आज वर्ष 2012
तक इस संस्था ने कई कार्यशालाओं
में अलग अलग जैसे, महिला
अत्याचार,
बाल विवाह, दहेज, स्त्री भ्रुणहत्या, एच.आय.व्ही- एड्स, बालमजूरी, पर्यावरण, प्रदुषण, शिक्षा, मानवाधिकार, भ्रष्टाचार, अंधश्रध्दा, डिसॅबलीटी... आदी विषयोंपर कॉमिक्स के
व्दारा प्रकाश डालने की कोशीश की, और
इन विषयोंपर 250
से 300 तक कॉमिक्स बनाये।
कॉमिक्स
एक ऐसा माध्यम है जिसे बच्चो से लेकर बडे बुढोंतक बेहद पसंद करते है। अखबार के
कोने मे आने वाला छाटासा कार्टून भी कम से कम शब्दोंमे हसी मजांक के साथ कई गंभीर
विषयोंपर प्रकाश डालता है। वैसे ही कई कॉमिक्स छोटी – छोटी कहानीयोंव्दारा लोगोंका मनोरंजन
करते है। पर यह सभी कॉमिक्स, कार्टून
इनको कोई कलाकार, या
पत्रकार बनाता है। इन कार्टून, कॉमिक्स
में कलाकार नजरीये से जो बात महत्त्वपूर्ण है, या फिर जो बात ज्यादा सुर्खीयोंमे है ऐसे विषयोंपर प्रकाश डाला
जाता है। पर इससे आम आदमी की बात, आम
आदमी की समस्या जैसी के वैसी रह जाती है। अगर आप सोच रहे है क्या ऐसा कोई कॉमिक्स
है जो आम आदमी की समस्या को लोगोंके सामने रखे? तो इसका उत्तर है... हॉं !... और उस कॉमिक्स का नाम है “ग्रासरुटस् कॉमिक्स !”
मराठवाडा कॉमिक्स क्लबने इसी सोच को सामने रखते हुये कई कार्यशालाओंका आयोजन किया। जिनमे आम आदमी को ग्रासरुट्स कॉमिक्स बनाने का तरीका सिखाया जा सके। इन कार्यशालाओंमे बेहद आसान तरीकेसे कोई भी आदमी हो या औरत, पढालिखा हो या अनपढ, बच्चा हो या बुढा ऐसा कोई भी आदमी जो अपनी बात लोगोंके सामने रखना चाहे वह ग्रासरुटस् कॉमिक्स बना सकता है।
मराठवाडा कॉमिक्स क्लब का उद्देश यह है की, आम आदमी को अपनी बात लोगोंके सामने रखने के लिये एक ऐसा माध्यम उपलब्ध करा देना जिससे वह अपनी बात लोगोंके सामने रख सके उस पर अपने विचार लोगोंतक पहुँचा सके। संस्थाने यहा इस बात का भी ध्यान रखा है की, अगर मुझे कुछ कहना है और उसके लिये बेहद ज्यादा न आये । अगर ज्यादा खर्चा आ रहा है, तो साधारण मनुष्य वह बात वही छोड देता है, चुप ही बैठना पसंद करता है। इसी लिये ग्रासरुटस् कॉमिक्स का निर्माण बेहद सोच समझके और आम आदमी के खर्चे को सामने रखकर किया गया है। दो ए-4 कागज, काला पेन बस्स.. इतनाही इस कॉमिक्स को बनाने के लिये आवश्यक चीजे है।
आज तक मराठवाडा कॉमिक्स क्लबने औरंगाबाद मे सामाजिक कार्य महाविद्यालय, जनसंवाद एवं वृत्तपत्रविद्या विभाग, सावीत्री-ज्योतीबा फुले समाजकार्य महाविद्यालय (यवतमाल), वॉटर संस्था (औरंगाबाद), संपदा ट्रस्ट (अहमदनगर), आदीथी प्लान (मुजफ्फरपूर, बिहार), आदी संस्थाओमे ग्रासरुट्स कॉमिक्स की कार्यशालाये आयोजित हुई। और बिहार, राजस्थान मे वर्ल्ड कॉमिक्स इंडीया के साथ भी कई कार्यशालाओंका आयोजन किया गया।
मराठवाडा कॉमिक्स क्लबने इसी सोच को सामने रखते हुये कई कार्यशालाओंका आयोजन किया। जिनमे आम आदमी को ग्रासरुट्स कॉमिक्स बनाने का तरीका सिखाया जा सके। इन कार्यशालाओंमे बेहद आसान तरीकेसे कोई भी आदमी हो या औरत, पढालिखा हो या अनपढ, बच्चा हो या बुढा ऐसा कोई भी आदमी जो अपनी बात लोगोंके सामने रखना चाहे वह ग्रासरुटस् कॉमिक्स बना सकता है।
मराठवाडा कॉमिक्स क्लब का उद्देश यह है की, आम आदमी को अपनी बात लोगोंके सामने रखने के लिये एक ऐसा माध्यम उपलब्ध करा देना जिससे वह अपनी बात लोगोंके सामने रख सके उस पर अपने विचार लोगोंतक पहुँचा सके। संस्थाने यहा इस बात का भी ध्यान रखा है की, अगर मुझे कुछ कहना है और उसके लिये बेहद ज्यादा न आये । अगर ज्यादा खर्चा आ रहा है, तो साधारण मनुष्य वह बात वही छोड देता है, चुप ही बैठना पसंद करता है। इसी लिये ग्रासरुटस् कॉमिक्स का निर्माण बेहद सोच समझके और आम आदमी के खर्चे को सामने रखकर किया गया है। दो ए-4 कागज, काला पेन बस्स.. इतनाही इस कॉमिक्स को बनाने के लिये आवश्यक चीजे है।
आज तक मराठवाडा कॉमिक्स क्लबने औरंगाबाद मे सामाजिक कार्य महाविद्यालय, जनसंवाद एवं वृत्तपत्रविद्या विभाग, सावीत्री-ज्योतीबा फुले समाजकार्य महाविद्यालय (यवतमाल), वॉटर संस्था (औरंगाबाद), संपदा ट्रस्ट (अहमदनगर), आदीथी प्लान (मुजफ्फरपूर, बिहार), आदी संस्थाओमे ग्रासरुट्स कॉमिक्स की कार्यशालाये आयोजित हुई। और बिहार, राजस्थान मे वर्ल्ड कॉमिक्स इंडीया के साथ भी कई कार्यशालाओंका आयोजन किया गया।
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ग्रासरुटस्
कॉमिक्स आन्दोलन क्या है?
ग्रासरुटस् कॉमिक्स आन्दोलन नब्बे के दशक मे शुरु हुआ। समान सोचवाले कुछ कार्टूनिस्ट, विकास पत्रकार एवं कार्यकर्ताओंने अपनी आजीविका से परे समाज सुधार के लिए कॉमिक्स को बतौर संचार माध्यम के रुप में प्रयोग करने का विचार बनाया। समाज एवं गैर सरकारी संस्थाओंने इसे शीघ्र ही स्विकारा चूंकी इसमें कही जानेवाली कहॉनियॉं उनकी खद की थी। निम्न साक्षरता क्षेत्रोंमे भी यह माध्यम काही प्रचलित हुआ। समझनेंमे आसान और कम लागत में तैयार होना ग्रासरुट्स कॉमिक्स के ऐसे गुण थए जिनसे यह गैर सरकारी संगठनों एवं विकास के क्षेत्र में काही लोकप्रिय हुआ। भारत में इन कॉमिक्स की जडें मजबूतं हुई और यह शीघ्र ही पूरे विश्व भर में फैली। अब यह माध्यम तांजानिया, माजाम्बिक, ब्राजिल, लेबनान, ब्रिटेन, फिनलैन्ड, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका एवं मंगोलिया में कार्यकर्ताओं, संस्थानों, सरकारी संगठनों आदि व्दारा प्रयोग किया जा रहा है। वर्ल्ड कॉमिक्स इंडीया के अंतर्गत मराठवाडा कॉमिक्स क्लबव्दारा ग्रासरुट्स कॉमिक्स की कार्यशालाएं, प्रदर्शनिया तथा ट्रैनिंग कॅम्पका आयोजन महाराष्ट्र में किया जा रहा है।
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ग्रासरुटस् कॉमिक्स की कार्यशाला
ग्रासरुटस्
कॉमिक्स कार्यशाला 3 दिनकी
होती है। इन तीन दिनोंमे कोई भी साधारण व्यक्ती जो कुछ कहने की, लोगोंको बताने की चाह रखता है वह इस
कार्यशाला का हिस्सा बन सकता है। इस कार्यशाला की रचना कुछ इस तरह की गयी है की
कोई भी आदमी हो या औरत, बच्चा हो
या बुढा, पढालिखा हो या अनपढ ऐसा हस कोई
व्यक्ती इस कार्यशाला का हिस्सा बन सकता है।
ग्रासरुटस् कॉमिक्स की कार्यशाला दुसरी
कार्यशालाओं से बिलकुल अलग है। इस कार्यशालामे आपको सिर्फ बैठनेकी जरुरत नही है।
आप इसमे हरपल कुछ ना कुछ करते रहते है। आपमें छुपा कलाकार इस कार्यशाला में उभरकर
सामने आता है। जिसे आपने अब तक कभी नही देखा था, जाना था। आपके
दिलमें छुपी हूई कई बाते इस कार्यशाला के दरमियॉं बाहर निकल आयेगी। यह सिर्फ एक कार्यशाला
न होके आपका आत्मविश्वास बढाने की एक जादूई छडी जैसा है।
हमारी कई कार्यशालाओं की शुरुवात में हमे बहोतसारे अलग अलग प्रश्नोंका सामना करना पडता है। हर बार कोई ना कोई ऐसा व्यक्ती हमे कार्यशालामें देखने को मिलता है जो मुझे नही आता सर, या फिर मै नही कर पाऊंगा, मै दिन कैसे रुकू यहा रुक के कोई मतलब नही, या फिर सर मै सिर्फ बैठूंगा ये चित्र निकालना मेरे बस की बात नही, तो कोई मैने जिंदगी मे कभी पेन्सील नही पकडी तो मै चित्र कैसे निकालूंगा आदी. प्रकार के कई प्रश्न हमे बताते है। परंतु वो जैसे ही पहला दिन रुकते है तो वह खुद दुसरे दिन रुकना चाहते है और तो और वह बेहद दिल लगाकर कॉमिक्स बनाते है। उनकी अपने कॉमिक्स की प्रति श्रध्दा इतनी बढ जाती है के वह किसीसे एक लब्ज भी अपने कॉमिक्स के खिलाफ सुनना नही चाहते, इतना इस कार्यशाला से उनका लगाव बढ जाता है। तीसरे दिन जब फिल्ड टेस्टींग जाना होता है, तो पहले दिन जो सवालोंका पहाड खडे करने वाले प्रतिभागी सबसे आगे होते है। यह हमे हर कार्यशाला के दौरान देखने को मिलता है। अंत मे जब कार्यशाला से जुडे अपने अनुभव को बताने को कहा जाता है तो अक्सर हमने यह पाया है, कम से कम 40% लोग कहते है, की "शरुवात मे हमे डर लगा की हम कर पायेंगे या नही पर अब हमे खुद पर यकीन हो गया है के यह हम कर सकते है। हमारा आत्मविश्वास बढ गया है। जीन चित्रोंसे हम आज तक भागते आये है वह कितने आसान है और कितना कुछ कह सकते है यह हमे आज पता चला..."
हमारी कई कार्यशालाओं की शुरुवात में हमे बहोतसारे अलग अलग प्रश्नोंका सामना करना पडता है। हर बार कोई ना कोई ऐसा व्यक्ती हमे कार्यशालामें देखने को मिलता है जो मुझे नही आता सर, या फिर मै नही कर पाऊंगा, मै दिन कैसे रुकू यहा रुक के कोई मतलब नही, या फिर सर मै सिर्फ बैठूंगा ये चित्र निकालना मेरे बस की बात नही, तो कोई मैने जिंदगी मे कभी पेन्सील नही पकडी तो मै चित्र कैसे निकालूंगा आदी. प्रकार के कई प्रश्न हमे बताते है। परंतु वो जैसे ही पहला दिन रुकते है तो वह खुद दुसरे दिन रुकना चाहते है और तो और वह बेहद दिल लगाकर कॉमिक्स बनाते है। उनकी अपने कॉमिक्स की प्रति श्रध्दा इतनी बढ जाती है के वह किसीसे एक लब्ज भी अपने कॉमिक्स के खिलाफ सुनना नही चाहते, इतना इस कार्यशाला से उनका लगाव बढ जाता है। तीसरे दिन जब फिल्ड टेस्टींग जाना होता है, तो पहले दिन जो सवालोंका पहाड खडे करने वाले प्रतिभागी सबसे आगे होते है। यह हमे हर कार्यशाला के दौरान देखने को मिलता है। अंत मे जब कार्यशाला से जुडे अपने अनुभव को बताने को कहा जाता है तो अक्सर हमने यह पाया है, कम से कम 40% लोग कहते है, की "शरुवात मे हमे डर लगा की हम कर पायेंगे या नही पर अब हमे खुद पर यकीन हो गया है के यह हम कर सकते है। हमारा आत्मविश्वास बढ गया है। जीन चित्रोंसे हम आज तक भागते आये है वह कितने आसान है और कितना कुछ कह सकते है यह हमे आज पता चला..."
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FAQ..
आम कॉमिक्स कार्यशालाओसे ये कैसे अलग है?
आम तौर पर कॉमिक्स की कार्यशाला
ऐसा सुनते ही लोगोंके मन मे एक शंका हमेशा उठती है,
और वो ये की हमे तो चित्र बनाना
नही आता, तो हम इस कार्यशाला का हिस्सा कैसे बन सकते है? मुझे तो
लिखना भी नही आता?.. ऐसे कई प्रश्न कार्यशाला को लेकर आम
आदमी के दिल में उठते है। उनमेसे कुछ...जैसे की...
इस कार्यशाला का हिस्सा बनने के लिये क्या चित्र बनाना आना जरुरी है?
उत्तर – ग्रासरुटस्
कॉमिक्स दुसरे कलाकारोंव्दारा बनाये गये कॉमिक्स से अलग है। इसमें स्थानिक व्यक्ती
अपनी सुझबुझ के अनुसार अपनी कहानी के पात्र बनाता है, और उनको
अपने गॉंव एवं संस्कृती से जुडे पोषाख बनाता है। इतना ही नही तो उस पात्र के संवाद
भी स्थानिय मुहावरों, चुटकुलों से जुडे होते है। इनसे
कॉमिक्स बेहद मजेदार एवं प्रभावशाली बनता है। और आसपास के लोगोंको समझने मे आसानी
होती है।
इस कॉमिक्स के लिये ए-४ कागज ही क्यू?
उत्तर – ए-4 आकार के
कागज बहोत ही कम किमत में और कही भी मिल जाते है। यहॉं तक की दूर दराज इलाकोंमेभी
ए-4 आकार का कागज आसानी से मिल जाता है। और जब इन कॉमिक्स की फोटो कॉपी
करानी हो तो ए-4 आकार की फोटोकॉपी मशिन किसी भी जगह
उपलब्ध हो जाती है।
छायाचित्र यह कॉमिक्स काले - सफेद ही क्यू होते है?
उत्तर – यदी यह कॉमिक्स रंगीन होंगे तो
आपको इन्हे बनाने मे कई चिजोंकी जरुरत पड सकती है। जैसे के रंग, और अगर
रंग खरीदने जाओ तो खर्चा बढता है। पर अगर ये काले सफेद रंगो मे बनाये तो इसे सिर्फ
काले रंग की जरुरत होती है, जो कही भी आसानीसे मिल जाता है। और
काले रंगके पेन के लिये जादा खर्चा भी नही आता। और तो और काले रंग की वजहसे इसे
फोटो कॉपी करना भी आसान हो जाता है।
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मराठवाडा कॉमिक्स क्लब की गॅलरी हाऊस मे आपका स्वागत है..!
इस गॅलरी मे आपको संस्था के सभी कामोंकी कुछ झलकीयॉं तथा अलग अलग संस्थाके साथ ली गयी कार्यशाला तथा फिल्ड टेस्टींग के छायाचित्र, कॉमिक्स, चलचित्र(व्हीडिओ) तथा चित्र (स्केच) के देखने को मिलेंगे.
छायाचित्र
कॉमिक्स
कार्यशालामे सभी प्रशिक्षणार्थी कॉमिक्स के वातावरण में बेहद घुलमिल जाते है। वह
इतना व्यस्त हो जाते है, की उनको
किसी भी बात का ध्यान नही रहता। ऐसीही कुछ तस्वीरे आपको इस गॅलरी मे देखने को
मिलेगी.
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ग्रासरुटस् कॉमिक्स
कॉमिक्स
कार्यशालामे कई गंभीर तथा मजेदार विषयोंपर कॉमिक्स बनायी जाती है। यह कॉमिक्स बेहद
प्रभावशाली और एक अच्छा मेसेज देनेवाले होते है। ऐसी ही कुछ कॉमिक्स आपको इस गॅलरी
मे मिलेगी.
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Us….
Marathwada Comics Club
C/o
Rahul ArunaKishan Ransubhe
N-7, I-15/4, Shastrinagar, Cidco, Aurangabad - 431 003,
E-mail:marathwadacomicsclub@gmail.com
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